Analysis: चुनाव के दूसरे चरण में भी वोटिंग रही कम, आखिर इस ट्रेंड का किस पर पड़ेगा असर?

मतदान प्रतिशत कम होने से कम मार्जिन वाली सीटों पर इसका सीधा असर पड़ता है. 2019 में 75 सीटों पर नजदीकी मुकाबला था. ऐसे में परिणाम किसी भी तरफ झुक सकता है.

Analysis: चुनाव के दूसरे चरण में भी वोटिंग रही कम, आखिर इस ट्रेंड का किस पर पड़ेगा असर?

नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) के दूसरे चरण में शुक्रवार को 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 88 सीटों पर मतदान हुए. हालांकि चुनाव को लेकर उत्साह शाम को आए वोटिंग प्रतिशत ने कम कर दिया. इस बार का वोटिंग ट्रेंड पहले चरण के चुनाव से भी खराब रहा. दूसरे चरण में महज 63.00 प्रतिशत मतदाताओं ने ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जबकि 2019 में इन्हीं सीटों पर 70 फीसदी से ज्यादा लोगों ने बढ़-चढ़कर वोट किया था. कम होते इस वोटिंग प्रतिशत ने सभी राजनीतिक दलों का गणित बिगाड़ दिया है.

पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोट डाले गए थे. पिछले चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुए थे. यही हाल दूसरे चरण में भी रहा. किसी भी राज्य में मतदान का आंकड़ा 80 फीसदी को पार नहीं कर सका.

आंकड़ों की बात करें तो सबसे ज्यादा त्रिपुरा में 78.6 प्रतिशत और सबसे कम उत्तर प्रदेश में 54.8 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. वहीं मणिपुर में 77.2 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 73.1 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 71.8 प्रतिशत, असम में 70.8, जम्मू और कश्मीर में 71.6, केरल में 65.3, कर्नाटक में 67.3, राजस्थान में 63.9, मध्य प्रदेश में 56.8, महाराष्ट्र में 54.3 और बिहार में 54.9 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट किया.

वोटिंग कम होने से बढ़ी राजनीतिक दलों के साथ चुनाव आयोग की भी चिंता
वोट करने के लिए लोगों के घरों से बाहर नहीं निकलने को लेकर राजनीतिक दलों को साथ-साथ चुनाव आयोग की भी चिंता बढ़ा दी है. खासकर हिंदी भाषी राज्यों में तो मतदाता वोटिंग को लेकर जैसे नीरस हो गए हैं. इससे पहले 2014 और 2019 में अच्छी-खासी तादाद में लोगों ने वोट किया था, लेकिन इस बार मतदाताओं में वो जोश देखने को नहीं मिल रहा है.

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Photo Credit: Twitter - election commission

यूपी में दोनों चरणों में वोटिंग कम
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 80 लोकसभा की सीटें हैं, लेकिन वहां के वोटरों में चुनाव को लेकर उत्साह नहीं दिख रहा है. पहले चरण में जहां 57 प्रतिशत वोट पड़े, वहीं दूसरे चरण में महज 54.8 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. जानकारों का मानना है कि किसके पक्ष में ज्यादा वोट गया है ये इस इस ट्रेंड से निकालना काफी मुश्किल है.

चुनाव और राजनीतिक रूप से सजग कहे जाने वाले बिहार में भी इस बार मतदाता वोट को लेकर काफी नीरस दिख रहे हैं. पहले चरण में जहां 48 फीसदी लोगों ने वोट किया, वहीं दूसरे चरण में  54.9 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. कई लोग बिहार में कम वोटिंग प्रतिशत को मौसम और पलायन से जोड़कर भी देख रहे हैं.

उत्तर भारत में गर्म मौसम भी वजह!
पूरे उत्तर भारत में इन दिनों मौसम का तापमान काफी बढ़ गया है. लू और गर्म हवाओं ने लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त किया हुआ है. लोगों के वोट करने को लेकर घर से बाहर नहीं निकलने की ये भी एक वजह बताई जा रही है. वहीं चुनाव में विपक्षी पार्टियों की कम सक्रियता से भी कम वोटिंग प्रतिशत को जोड़कर देखा जा रहा है. वहीं आजकल के चुनाव में फिजिकल प्रचार की बजाय सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल भी वोटिंग ट्रेंड को कम कर रहा है.

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कम मतदान से कम मार्जिन वाली सीटों पर असर
मतदान प्रतिशत कम होने से कम मार्जिन वाली सीटों पर इसका सीधा असर पड़ता है. 2019 में 75 सीटों पर नजदीकी मुकाबला था. ऐसे में परिणाम किसी भी तरफ झुक सकता है. कुछ जानकारों का कहना है कि कम मतदान से सत्ताधारी दलों को फायदा हो सकता है, क्योंकि लोगों की सोच होती है कि सरकार अच्छा काम कर रही है और वो बदलाव नहीं चाहते. इसीलिए वो वोट के लिए घर से बाहर नहीं निकलते.

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कम वोटिंग ट्रेंड से सरकार बदलने के आसार?
पिछले 12 में से 5 चुनावों में वोटिंग प्रतिशत कम हुए हैं और इनमें से चार बार सरकार बदली है. 1980 के चुनाव में मतदान प्रतिशत कम हुआ और जनता पार्टी को हटाकर कांग्रेस ने सरकार बनाई. वहीं 1989 में मत प्रतिशत गिरने से कांग्रेस की सरकार चली गयी. केंद्र में  बीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी. 1991 में भी मतदान में गिरावट के बाद केंद्र में कांग्रेस की वापसी हुई. हालांकि 1999 में वोटिंग प्रतिशत में गिरावट के बाद भी सत्ता नहीं बदली. वहीं 2004 में एक बार फिर मतदान में गिरावट का फायदा विपक्षी दलों को मिला.